Friday 7 September 2012

ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (क)वन्दना (४) राष्ट्र-वन्दना


       






राष्ट्र-वन्दना





(मेरे भारत देश)





       
! मेरे भारत देश,स्वर्ग से


   

सुन्दर और सु रूप हो तुम !




    
  
  



शान्त चित्त तुम, अवढर दानी-आगत के सत्कारक हो ! 


हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!


‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!


तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!



 
 
  




सहन शक्ति है असीम शिव सी,जग जाते तो रौद्र महा |


वैरी को भी गले लगाया, उसका अत्याचार सहा ||


पर जब तूमने ‘करवट बदली’,’विप्लव’ हो,’विद्रूप’ हो तुम !


तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!२!!




  



‘ओज-अनल’ को सहेज रखते,’शान्त ज्वालामुखी’ हो तुम !


तुम न कभी हो सत्ता लोलुप,है तुम में अनंत संयम ||


दैत्य जब आक्रामक होते, ‘त्रिदेव के प्रारूप’ हो तुम !!


तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!३!!


 



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बृहस्पतिवार, 6 सितम्बर 2012

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